Satya Aur Ahinsa essay in Hindi - गांधी जी के अनुसार सत्य और अहिंसा में क्या संबंध है
गांधी जी के अनुसार Satya Aur Ahinsa में क्या संबंध है, सत्य अहिंसा पर निबंध, सत्य और अहिंसा में निबंध, सत्य और अहिंसा महात्मा गांधी द्वारा रचित निबंध.
Satya Aur Ahinsa essay in Hindi
Satya Aur Ahinsa को अपना अस्त्र बनाकर उन्होंने अंग्रेजों से अहिंसात्मक लड़ाई लड़ी और राष्ट्र को स्वतंत्र कराने में अहम् भूमिका निभायी । उनका स्वर्गवास 30 जनवरी , 1948 को गोली लगने से हुआ ।
गांधी जी के अनुसार सत्य क्या है ?
क्या सत्य ही आराध्य है ?
अहिंसा क्या है?
गाँधी जी एक कुशल अध्येयता , विचारक और साहित्य प्रेमी थे । उनकी स्त्री शिक्षा ' , ' हरिजन ' , ‘ सत्य के साथ मेरे प्रयोग ' जैसी अनेक रचनाएँ लोकप्रिय हुई । सादगी ' , ' स्वावलम्बन ' आदि पर आधारित अनेक प्रेरणास्पद निबन्ध लिखकर उन्होंने पाठक समुदाय को जाग्रत किया है ।
' Satya aur Ahinsa का उद्देश्य '
अहिंसा गाँधी जी के अनुसार
इसमें कष्टों और दुःखों का सामना करना पड़ता है । सत्य और अहिंसा में घनिष्ठ सम्बन्ध है । इनके बिना मानव - जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं हो सकती ।" सत्य और अहिंसा के व्यावहारिक महत्व पर प्रकाश डालिए ।
' सत्य और अहिंसा ' महात्मा गाँधी की सुप्रसिद्ध निबंध रचना है । महात्मा गाँधी भारतीय स्वतंत्रता के जनक रहे हैं । राजनीति के साथ - साथ साहित्य के क्षेत्र में भी उनका अतिविशिष्ट महत्व है । कुशल पत्रकार , चिन्तक , आलोचक और लेखक आदि के रूप में भी उनका व्यक्तित्व प्रेरणास्पद और बहुचर्चित रहा है ।
' Satya Aur Ahinsa ' एक विवेचनात्मक निबंध है ।
लेखक की दृष्टि में परम पिता की शाश्वत सत्ता के प्रतीक के रूप में उन्होंने सत्य को स्पष्ट किया । सत्य सनातन , शाश्वत और चिरस्थायी है ।
इनकी दृष्टि में सत्य से तात्पर्य केवल सत्य - भाषण तक सीमित नहीं है , बल्कि सत्य की सत्ता अत्यंत विशाल है । सदाचरण में सत्य का समावेश होना चाहिए । जब तक व्यक्ति सम्पूर्ण ज्ञान के साथ सत्य से सराबोर नहीं होगा तब तक इसकी महत्ता वह ठीक से नहीं समझ सकेगा ।
सत्य एक अस्त्र है जिससे बड़ी से बड़ी कठिनाइयों और बाधाओं पर विजय प्राप्त किया जा सकता है । ‘ सत्य ही परमेश्वर है ' इसे मंत्र के रूप में मान लेना चाहिए । जिस प्रकार पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा भी स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता है उसी प्रकार सत्य के स्पर्श से मानव - जीवन , यहाँ तक दुराचारी पुरुष भी स्वर्णिम संस्कारों से युक्त हो जाता है ।
अहिंसा का रास्ता जितना सीधा है, उतना ही संकरा तंग है।
इस डोर पर चलना अत्यन्त दुष्कर कार्य है । सफल साधक ही अहिंसा रूपी डोर पर चल सकता है ।
अहिंसा का मार्ग अपनाने का यह मतलब कदापि नहीं निकाला जाना चाहिए की अन्याय एवं अत्याचार सहकर भी अहिंसा का पालन करें । अन्यायी एवं अत्याचारी की आत्मा को जीतकर हम उसमें परिवर्तन ला सकते हैं । अहिंसा कुविचार एवं उतावलापन है ।
मिथ्या भाषण , किसी का बुरा चाहना , प्राकृतिक वस्तुओं पर कब्जा आदि हिंसा की श्रेणी में आते हैं । इन सबका निषेध करके ही हम अहिंसा के मार्ग पर चल सकते हैं । जाने अनजाने हम बहुत से हिंसक कार्य कर जाते हैं , इस सबसे बचकर ही मनुष्यता की रक्षा की जा सकती है ।
गांधी जी के सिद्धान्त
Join the conversation